मोहब्बत की गजल


             मोहब्बत की गजल

 

मेरे लिए भी जमुना किनारे 
ताज महल बनवा दो ना

सच्ची मोहब्बत करते हैं. हम.! , 

की दुनिया को दिखला दो...!!

शाहजहां के नाम के नीचे...!

नाम अपना भी लिखवा दो ना...!!

कुछ नहीं चाहूं,  कुछ नहीं मांगू

 यार मेरे बस इसके सिवा...२

मेरे लिए भी 'जमुना' किनारे,

'ताजमहल' बनवा दो ना...२ 

खुशबुओं के मौसम में...!

बचपन से ही खेली हूं...!!

मैं धूप की बेला हूं , 

रातों की चमेली हूं...!

दिल❤️ आज न जाने क्यों? 

 रह-रह हैं कर धड़कता है...!?

आजा ओ मेरे साजन मैं घर में अकेली हूं ...!

आ जाओ मेरे साजन मैं घर में अकेली हूं...!!

कदम-कदम पर तुम साथ मेरे 'तफर' में रहो...!

मैं चाहती हूं हमेशा मेरी नजर में रहो...!

हमारी प्रेम की अंगड़ाइयो का राज हो तुम...!!

हमारे प्यार की इकलौती जान "नाज़" हो तुम...२

इसीलिए यह गुजारिश है... अपने घर में रहो तुम...!!

 मैं चाहती हूं हमेशा मेरी नजर में रहो तुम...!

नजर का दीप जलाया हुआ तुम्हारा है...! 

यह शहर ए दिल भी बसाया हुआ तुम्हारा है !! 

तुम्हें यह हक है जहां चाहो शहर भर में रहो...!

मैं चाहती हूं हमेशा मेरी नजर में रहो !!

कदम-कदम पर तुम साथ मेरे सफर में रहो...!

मैं चाहती हूं हमेशा मेरी नजर में रहो...!! 

खुदा करे कि बहुत जल्द वह मुकाम आए...!

हमारे नाम के आगे तुम्हारा नाम आए ...२ 

दुआ को हाथ उठाता हूं तो तुम असर में रहो...२

मैं चाहती हूं हमेशा,  तुम मेरी नजर में रहो...!!

कदम-कदम पर मेरे साथ..... कदम-कदम पर मेरे साथ...

खुदा के वास्ते अपनी इन आंखों को नम ना करो..!

तुम्हारे साथ है ''शबनम'' तो कोई गम ना करो...!!

बड़े सुकून से तुम अपने रह- गुजर में रहो...!

मैं चाहती हूं हमेशा मेरी नजर में रहो.....!! 🙏🙏


----  pallavii...✍️





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